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यहां हॉस्टलों में लड़कियां कपड़े बदलते समय भी दरवाजा नहीं बंद कर सकती!

लोगों में अब महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर उनके जीवन को नियंत्रित करने का जुनून पागलपन में बदल गया है. उनके इस पागलपन पर गुस्सा भी हद से ज्यादा आता है. दुनिया भर में महिलाओं को उनकी सुरक्षा के नाम पर कई कामों को करने से रोका जाता है. एक तरह से कहें तो उन्हें और उनकी लाइफ को कंट्रोल किया जाता है. ये कहीं से भी ठीक नहीं है.
इसके लिए अगर पहले से ही प्रचलित पितृसत्तात्मक लोग, खाप पंचायत, मौलाना और उनके आदेश काफी नहीं थे, तो अब हमारे देश के विश्वविद्यालय संस्कृति के नए ठेकेदार बनकर उभर रहे हैं. ये छात्राओं की सुरक्षा के नाम पर एक से एक बेतुके नियमों को ला रहे हैं और उन्हें लागू भी कर रहे हैं. हाल ही में, दिल्ली यूनिवर्सिटी के इंटरनेशनल स्टूडेंट हाउस फॉर विमेन (आईएसएचडब्लू) और मेघदूत छात्रावास ने महिला छात्रों को सुरक्षा के नाम पर होली के दिन बाहर निकलने पर रोक लगा दी!
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छात्रावास के अधिकारियों ने नोटिस लगा दिया. नोटिस के अनुसार: 'हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों और महिला अतिथियों को 12 मार्च की रात 9 बजे से 13 मार्च की शाम 6 बजे तक हॉस्टल से बाहर जाने या अंदर आने की अनुमति नहीं दी जाएगी. साथ ही 12 मार्च की रात को कहीं भी जाने की इजाजत नहीं होगी.
कितना लोकतांत्रिक आदेश है, है ना?
होली जैसे त्योहारों पर महिलाओं को कैद कर देना क्या जरुरी है? और अगर इस इजाजत के पीछे का उद्देश्य होली के हुड़दंगियों से लड़कियों को बचाना है तो फिर उन बदमाशों को ही क्यों ना कैद कर दिया जाए. बजाए इसके कि लड़कियों को कैद में रहना पड़े. क्योंकि उन्हें नहीं पता कि महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है.
लेकिन यह कोई पहली बार नहीं है जब हमारे यहां छात्रावास में महिला छात्रों के लिए कोई विचित्र नियमों बनाया गया हो. लड़कियों के जिन्स पहनने पर पाबंदी से शुरु होकर ये लिस्ट चलती ही जाती है. इन सारे नियमों से लड़कियों की सुरक्षा कितनी होती है वो तो पता नहीं पर उनकी लाइफ मुश्किल जरुर हो जाती है. मेनका गांधी जैसे किसी केंद्रीय मंत्री का हॉस्टल में महिलाओं पर लगाए गए कर्फ्यू को न्यायसंगत कहना और उसका सपोर्ट करना भी निराशाजनक है. जले पर नमक का काम उनका हॉस्टलों पर लगने वाली पाबंदियों के पक्ष में दिया गया कुतर्क कर जाता है
एक साक्षात्कार में मेनका गांधी ने कहा था, 'जब आप 16 या 17 साल के होते हैं, तब शरीर में खूब सारे हार्मोनल बदलाव होते हैं. जिससे निपटना एक चुनौती के समान होता है. इसलिए हार्मोन संबंधी इन दिक्कतों से बचाने के लिए ही शायद एक लक्ष्मण रेखा बनाई गई है.' ठीक है, लेकिन जब लड़कियां मैच्योर हो जाती हैं तब का क्या? क्या ये नियम व्यस्कों पर भी लागू होते हैं? जी. ऐसा ही होता है.

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डीयू की तरह, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) भी इसी राह पर चल रहा है. बीएचयू में भी महिलाओं को छात्रावास की चार दीवारों में बंद रखा जा रहा है. ताकि उन्हें बुरी नज़र रखने वालों से बचाया जा सके. यहां महिला विद्यार्थियों शाम आठ बजे के बाद से बाहर जाने की अनुमति नहीं है, जबकि पुरुष छात्रों पर कैसी कोई पाबंदी नहीं लगाई गई है. इतना ही काफी नहीं था तो यहां के हॉस्टल में लड़कियों को मांसाहारी भोजन नहीं परोसा जाता है. इसके पीछे का कारण समझ से परे है.
यही नहीं महिला छात्रों को यहां एक सख्त ड्रेस कोड का पालन करना पड़ता है. इसके तहत् उन्हें पश्चिमी पहनावे पहनने की अनुमति नहीं है. लेकिन एक बार फिर लड़कों के लिए इस तरह के किसी कानून की जरुरत नहीं समझी जाती है.
अगर ये सारी खबरें आपको सिर से ऊपर जाती हुई और नाकाबिले बर्दाश्त लग रही हैं तो रूकिए, एक और धमाका हम कर ही देते हैं. आपको पता होना चाहिए कि केरल में उपासना नर्सिंग कॉलेज ने लड़कियों के लिए अपने कमरे का दरवाजा बंद करना बैन कर दिया है! यहां तक की कपड़े बदलते समय भी उन्हें कमरे का दरवाजा खुला ही रखना होता है. इसके पीछे इस बात का डर है कि बंद दरवाजों के पीछे लड़कियां समलैंगिक गतिविधियों में संलग्न हो जाएंगी!
अब, इससे पहले कि आप दीवार में अपना सिर फोड़ डालें तेलंगाना में डिग्री कॉलेज हॉस्टल की आवासीय महिलाओं के लिए एक दूसरी रणनीति के बारे में बता देते हैं. यहां के अधिकारी छात्रावास में विवाहित महिलाओं को एडमिशन नहीं देते. कारण? उनका मानना ​​है कि विवाहित महिलाओं के होने से अविवाहित लड़कियों का ध्यान भटकता है. आखिर ऐसा कैसे हो सकता है? दरअसल हर हफ्ते विवाहित महिलाओं के पति उनसे मिलने आते हैं और ये चीज कुंआरी लड़कियों के ध्यान को भटकाती है जिसे कॉलेज के प्रशासक बर्दाश्त नहीं कर सकते.
लड़कियों के लिए इस तरह के कुतर्कों से भरे नियमों की लिस्ट खत्म नहीं होगी, हां रोज इसमें कुछ नई बातें जुड़ती जरुर जाती हैं. कर्फ्यू, ड्रेस कोड से लेकर बंद दरवाजे कुछ बानगी भर हैं. जिन शैक्षिक संस्थानों को ज्ञान देने और बच्चों को जीवन में आगे बढ़ने की शिक्षा देने का काम है वो ये समझ ही नहीं पा रहे इस तरह के तुगलकी फरमान से वो महिलाओं का कोई भला नहीं कर रहे हैं. बल्कि सुरक्षा के नाम पर महिलाओं की रचनात्मकता और ललक को मार रहे हैं.
हालांकि कहीं कहीं से कुछ पॉजीटिव बातें भी सुनने में आ रही हैं. BITS पिलानी ने काफी हो-हल्ले के बाद अपने महिलाओं के छात्रावास पर 11.30 बजे रात के कर्फ्यू उठा लिया है. हम आशा करते हैं कि अन्य संस्थान भी BITS पिलानी से प्रेरणा लेकर लड़कियों को सांस लेने की छूट देंगे.

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